
सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा राज्य को चेतावनी दी है कि यदि राज्य सरकार हिसार के हांसी तहसील के भाटिया गांव में एक ‘प्रमुख’ समुदाय द्वारा दलितों के कथित सामाजिक बहिष्कार की जांच कर रहे कार्ट द्वारा नियुक्त पैनल के साथ सहयोग नहीं करती है, तो वह अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू करेगी।
रिटायर्ड डीजीपी कामेंद्र प्रसाद द्वारा 31 जनवरी, 2025 को लिखे गए पत्र का अवलोकन करने के बाद न्यायमूर्ति एमएम सुंदरश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह एक खेदजनक स्थिति को दर्शाता है।
पीठ ने कहा, प्रयास किए जाने के बावजूद, राज्य सहयोग करने को तैयार नहीं है। हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि राज्य की ओर से सहयोग में किसी भी तरह की कमी से अवमानना कार्यवाही शुरू हो जाएगी। इसके साथ ही पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 6 सप्ताह बाद तय की।
हरियाणा सरकार के वकील ने पीठ को आश्वासन दिया कि इस कार्य के लिए अदालत द्वारा नियुक्त अधिकारियों की यात्रा और ठहरने की व्यवस्था सहित सभी प्रकार का सहयोग दिया जाएगा। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कोलिन गोंजाल्विस ने आरोप लगाया कि शीर्ष अदालत के आदेश का पालन नहीं किया गया है और हरियाणा सरकार द्वारा कोई रसद सहायता प्रदान नहीं की गई है। जबकि दो सदस्यीय समिति ने तीन बार संवाद किया था कि यदि रसद सहायता प्रदान की जाती है तो वे दौरा करने के लिए तैयार हैं।
हैंडपंप को लेकर हुआ विवाद
जून 2017 में हिसार के एक गांव में हैंडपंप के इस्तेमाल को लेकर दलित लड़कों के एक समूह पर ‘प्रमुख समुदाय’ के लोगों ने कथित तौर पर हमला किया था। हमले में 6 लोग घायल हो गए थे और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जिसके बाद एफआईआर दर्ज की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर, 2024 को उत्तर प्रदेश के दो पूर्व डीजीपी द्वारा हिसार के एक गांव में एक ‘प्रमुख समुदाय’ द्वारा दलितों के सामाजिक बहिष्कार के आरोपों की स्वतंत्र जांच का आदेश दिया था।